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नज़्म
ये ख़त लिखना तो दक़यानूस की पीढ़ी का क़िस्सा है
ये सिंफ़-ए-नस्र हम ना-बालिग़ों के फ़न का हिस्सा है
जौन एलिया
नज़्म
मकाँ फ़ानी मकीं फ़ानी अज़ल तेरा अबद तेरा
ख़ुदा का आख़िरी पैग़ाम है तू जावेदाँ तू है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वही दुनिया है लेकिन हुस्न देखो आज दुनिया का
है जब तक रात बाक़ी कह नहीं सकते कि फ़ानी है
नज़ीर बनारसी
नज़्म
वो इक फ़ानी बशर था मैं ये बावर कर नहीं सकता
बशर इक़बाल हो जाए तो हरगिज़ मर नहीं सकता