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नज़्म
मुझ से कुछ पिन्हाँ नहीं इस्लामियों का सोज़-ओ-साज़
ले गए तसलीस के फ़रज़ंद मीरास-ए-ख़लील
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सुब्ह का फ़रज़ंद ख़ुर्शीद-ए-ज़र-अफ़शाँ का अलम
मेहनत-ए-पैहम का पैमाँ सख़्त-कोशी की क़सम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ये दुनिया दावत-ए-दीदार है फ़रज़ंद-ए-आदम को
कि हर मस्तूर को बख़्शा गया है ज़ौक़-ए-उर्यानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अपने फ़रज़ंद से फ़ारूक़-ए-मोअज़्ज़म ने कहा
तुम को है हालत-ए-असली की हक़ीक़त पे उबूर
शिबली नोमानी
नज़्म
इस से कुछ हट कर गुलाबी शाख़-चों की छाँव में
थे वलीउल्लाह के फ़रज़ंद नुक्ता-आफ़रीं
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
'कुछ और कहो तो सुनता हूँ इस बाब में कुछ मत फ़रमाना'
इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
किस की नौ-मीदी पे हुज्जत है ये फ़रमान-ए-जदीद
है जिहाद इस दौर में मर्द-ए-मुसलमाँ पर हराम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हवा लहरों पे लिखती है तो पानी पर तहरीर करता है
कि हम फ़रज़ंद-ए-आदम की तरह सब नक़्श-गर हैं
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
उम्र-ए-रफ़्ता के किसी ताक़ पे बिसरा हुआ दर्द
फिर से चाहे कि फ़रोज़ाँ हो तो हो जाने दो