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नज़्म
बे-तकल्लुफ़ ख़ंदा-ज़न हैं फ़िक्र से आज़ाद हैं
फिर उसी खोए हुए फ़िरदौस में आबाद हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुम कि बन सकती हो हर महफ़िल में फ़िरदौस-ए-नज़र
मुझ को ये दावा कि हर महफ़िल पे छा सकता हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तेरे फ़िरदौस-ए-तख़य्युल से है क़ुदरत की बहार
तेरी किश्त-ए-फ़िक्र से उगते हैं आलम सब्ज़ा-वार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़िरदौस-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ है दामान-ए-लखनऊ
आँखों में बस रहे हैं ग़ज़ालान-ए-लखनऊ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
पहले तो हुस्न-ए-अमल हुस्न-ए-यक़ीं पैदा कर
फिर इसी ख़ाक से फ़िरदौस-ए-बरीं पैदा कर
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
अब तक असर में डूबी नाक़ूस की फ़ुग़ाँ है
फ़िरदौस-ए-गोश अब तक कैफ़िय्यत-ए-अज़ाँ है
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
वो इक बुत थी ये सारी वादियाँ बुत-ख़ाना थीं उस का
वो इस फ़िरदौस-ए-वज्द-ओ-रक़्स में मस्ताना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मग़्फ़िरत की तुझ पे मौला अब फ़रावानी करे
जन्नत-उल-फ़िरदौस में भी रहमत अर्ज़ानी करे
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
जिस के दामन में अँधेरे के सिवा कुछ भी न था
हम ने इस दश्त को ठहरा लिया फ़िरदौस-ए-नज़ीर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मेरी दुनिया कि मिरे ग़म से जहन्नम-बर-दोश
तू ने दुनिया को भी फ़िरदौस बना रक्खा है