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नज़्म
शजर-ए-फ़ितरत-ए-मुस्लिम था हया से नमनाक
था शुजाअत में वो इक हस्ती-ए-फ़ोक़-उल-इदराक
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रास्ते में रुक के दम ले लूँ मिरी आदत नहीं
लौट कर वापस चला जाऊँ मिरी फ़ितरत नहीं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तिरी फ़ितरत अमीं है मुम्किनात-ए-ज़िंदगानी की
जहाँ के जौहर-ए-मुज़्मर का गोया इम्तिहाँ तो है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुझ पे क्या ख़ुद अपनी फ़ितरत पर भी वो खुलती नहीं
ऐसी पुर-असरार लड़की मैं ने देखी ही नहीं
जौन एलिया
नज़्म
है अज़ल से इन ग़रीबों के मुक़द्दर में सुजूद
इन की फ़ितरत का तक़ाज़ा है नमाज़-ए-बे-क़याम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
असर ये भी है इक मेरे जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ का
मिरा आईना-ए-दिल है क़ज़ा के राज़-दानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अदाएँ ले के आई है वो फ़ितरत के ख़ज़ानों से
जगा सकती है महफ़िल को नज़र के ताज़्यानों से
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जानता हूँ आह में आलाम-ए-इंसानी का राज़
है नवा-ए-शिकवा से ख़ाली मिरी फ़ितरत का साज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जज़्ब है दिल में मिरे दोनों जहाँ का सोज़-ओ-साज़
बरबत-ए-फ़ितरत का हर नग़्मा सुना सकता हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
रुकी रुकी दिल-ए-फ़ितरत की धड़कनें यक-लख़्त
ये रंग-ए-शाम कि गर्दिश ही आसमाँ में नहीं