aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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आँख मेंऔर गर्दन में लक़्क़े कबूतर की दुम रह गई
ये कह रही है इशारों में गर्दिश-ए-गर्दूंकि जल्द हम कोई सख़्त इंक़लाब देखेंगे
इक तमाशा कि जो मेरी मुट्ठी में हैएक गर्दन कि जो ग़म के फंदे में है
किसी शख़्स का घर बता देतो अगले ही पल में उस की गर्दन उड़ा दें
रंग बिरंगे फूल चमन में इन पर खिलते हैंहम अपनी धरती को फूलों से महकाएँगे
हर ज़ाफ़राँ के फूल मेंअक्स-ए-जमाल-ए-हूरईं
जब तकिए और गर्दन मेंसमझौता हो जाता है
मैं इक गिर्दाब की मानिंद वापस लौटता हूँउस समुंदर में
घटाएँ वज्द में आएँ ये गेसुओं की लटक6
फूल खिले कलियाँ लहराईंकोंपलें फिर शाख़ों में आईं
पत्तों की सब्ज़ ख़ुशबूजब सब घरों में आई
हर एक फूल में तमईज़-ए-रंग-ओ-बू रखनाख़याल जिस का गुज़र-गाह-ए-सद-बहाराँ है
हर ख़ार में इक बुत-ख़ाना थाहर फूल में सौ मय-ख़ाने थे
वो ये शाख़ है जिस में इक दिन फूल खिलेंगे
चाँदनी रात है जवानी परदस्त-ए-गर्दूं में साग़र-ए-महताब
शेल्फ़ में रक्खी सारी किताबों के ऊपर जमी धूल मेंउन में रक्खे हुए कासनी फूल में
कोई ज़ंजीर-ए-मक़्नातीस है जोदस्त-ओ-गर्दन में हमाइल है
अज़्म को जब देती है तू मेल जस्तगुम्बद-ए-गर्दूं नज़र आता है पस्त
तश्त-ए-गर्दूं में जैसे नज्म-ए-सहरशब की आँखों में जैसे बीनाई
इतने में इक क़ामत-ए-रानाक़दम क़दम पर फूल खिलाता
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