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नज़्म
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
वो हँसती हो तो शायद तुम न रह पाते हो हालों में
गढ़ा नन्हा सा पड़ जाता हो शायद उस के गालों में
जौन एलिया
नज़्म
मैं न ज़िंदा हूँ कि मरने का सहारा ढूँडूँ
और न मुर्दा हूँ कि जीने के ग़मों से छूटूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
क्या सख़्त मकाँ बनवाता है ख़म तेरे तन का है पोला
तू ऊँचे कोट उठाता है वाँ गोर गढ़े ने मुँह खोला
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
लाख बैठे कोई छुप-छुप के कमीं-गाहों में
ख़ून ख़ुद देता है जल्लादों के मस्कन का सुराग़
साहिर लुधियानवी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
या नुमायाँ बाम-ए-गर्दूं से जबीन-ए-जिब्रईल
वो सुकूत-ए-शाम-ए-सहरा में ग़ुरूब-ए-आफ़्ताब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इलाही फिर मज़ा क्या है यहाँ दुनिया में रहने का
हयात-ए-जावेदाँ मेरी न मर्ग-ए-ना-गहाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये हर इक गाम पे उन ख़्वाबों की मक़्तल-गाहें
जिन के परतव से चराग़ाँ हैं हज़ारों के दिमाग़