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नज़्म
जिस्म की एक एक बोटी गोश्त वाला ले गया
तन में बाक़ी थी जो चर्बी घी का प्याला ले गया
जोश मलीहाबादी
नज़्म
गोश्त मछली सब्ज़ियाँ बनिए का राशन दूध घी
मुझ को खाती हैं ये चीज़ें मैं ने कब खाया इन्हें
शकील आज़मी
नज़्म
कोई ना-माक़ूल आ कर गालियाँ भी दे अगर
उस से कहिए भाग जा हट तेरे मुँह में घी शकर
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
जाने कितने अजनबी इक दूसरे के दोस्त बनने से किनारा कर गए
और कितने आश्नाओं के दिलों से मिट गई पहचान भी