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नज़्म
चुपके चुपके रात को तशरीफ़ जब लाता है चाँद
हर तरफ़ धरती पे कैसा नूर बरसाता है चाँद
अबरार किरतपुरी
नज़्म
महरम-ए-शबनम रफ़ीक़-ए-लाला-ए-सहरा हूँ मैं
हम-नशीन-ए-यासमीन-ओ-नर्गिस-ए-शहला हूँ मैं
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
वो क्या जानें क्यों माह-पारों से पूछो
मोहब्बत है क्या ग़म के मारों से पूछो