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नज़्म
दो शम्ओं' की लौ पेचाँ जैसे इक शो'ला-ए-नौ बन जाने की
दो धारें जैसे मदिरा की भरती हुइ किसी पैमाने की
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
ऐ मतवालो नाक़ों वालो! नगरी नगरी जाते हो
कहीं जो उस की जान का बैरी मिल जाए ये बात कहो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
कैसे कैसे अक़्ल को दे कर दिलासे जान-ए-जाँ
रूह को तस्कीन दी है दिल को समझाया भी है
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
देखिए देते हैं किस किस को सदा मेरे बाद
'कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़'
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़्गन-ए-इल्म
किस के सर जाएगा अब बार-ए-गिरान-ए-उर्दू
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
बाहें फैलाए हुए रास्ता रोके है खड़ा
कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द अफ़गन-ए-इश्क़
मोहम्मद दीन तासीर
नज़्म
ब-फ़ैज़-ए-सोज़-ए-ख़ुदी तेरी ज़ीस्त की रातें
हरीफ़-ए-सुब्ह-ए-ज़र-अफ़्शाँ नहीं तो कुछ भी नहीं