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नज़्म
तअ'ज़ीम जिस की करते हैं तो अब और ख़ाँ
मुफ़्लिस हुए तो हज़रत-ए-लुक़्माँ किया है याँ
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
यही फ़रज़ंद-ए-आदम है कि जिस के अश्क-ए-ख़ूनीं से
किया है हज़रत-ए-यज़्दाँ ने दरियाओं को तूफ़ानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कि जिन के सर पर फिरा जो हज़रत का दस्त-ए-शफ़क़त
तो कम-सिनी के लहू से रीश-ए-सपेद रंगीन हो गई है
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हज़रत-ए-इक़बाल का इब्लीस-ए-कोचक ख़ौफ़ से
लरज़ा-बर-अंदाम यूँ शैताँ से करता है ख़िताब
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जल्वे पराए हैं
मिरे हमराह भी रुस्वाइयाँ हैं मेरे माज़ी की