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नज़्म
हाँ देखा कल हम ने उस को देखने का जिसे अरमाँ था
वो जो अपने शहर से आगे क़र्या-ए-बाग़-ओ-बहाराँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम
राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम
चकबस्त ब्रिज नारायण
नज़्म
तुम्हें मालूम है ना
हमारा सहन छोटा है और उस में चंद ख़्वाब ही ब-मुश्किल पूरे उतरते हैं
ज़ेहरा अलवी
नज़्म
कल वॉशिंगटन शहर की हम ने सैर बहुत की यार
गूँज रही थी सब दुनिया में जिस की जय-जय-कार
अहमद फ़राज़
नज़्म
बे-शुमार आँखों को चेहरे में लगाए हुए इस्तादा है तामीर का इक नक़्श-ए-अजीब
ऐ तमद्दुन के नक़ीब!
मीराजी
नज़्म
कोई पत्ता भी नहीं हिलता, न पर्दों में है जुम्बिश
फिर भी कानों में बहुत तेज़ हवाओं की सदा है