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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ज़बाँ पर हैं अभी इस्मत ओ तक़्दीस के नग़्मे
वो बढ़ जाती है इस दुनिया से अक्सर इस क़दर आगे
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
माँ अक्सर मेरी खाँसी पर तुम्हारा धोखा खाती है
ये बड़ की मेरी इक आदत तुम्हारी सी बताती है