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नज़्म
निकल कर जू-ए-नग़्मा ख़ुल्द-ज़ार-ए-माह-ओ-अंजुम से
फ़ज़ा की वुसअतों में है रवाँ आहिस्ता आहिस्ता
नून मीम राशिद
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
जिसे हम मुर्दा समझे ज़िंदा तर पाइंदा तर निकला
मह ओ ख़ुर्शीद से ज़र्रे का दिल ताबिंदा तर निकला
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
कौन समझे कि ये अंदेशा-ए-फ़र्दा की फ़ुसूँ-कारी है
माह ओ ख़ुर्शीद ने फेंके हैं कई जाल इधर
अख़्तर पयामी
नज़्म
तारीक दिखाई देती है दुनिया ये मह-ओ-ख़ुर्शीद उसे
रोज़ी का सहारा हो जिस दिन वो रोज़ है रोज़-ए-ईद उसे
नुशूर वाहिदी
नज़्म
कि वो किस जहान-ए-ख़राबात से रौशनी की क़तारों को कर्ज़ों की सूरत में ले कर
बड़े मान से ऐसे मंज़र
माहरुख़ अली माही
नज़्म
आँखों की चमक रू-कश-ए-बज़्म-ए-मह-ओ-परवीं
पैराहन-ए-ज़र-तार में इक पैकर-ए-सीमीं