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नज़्म
आप को मेरा मम्नून-ए-एहसान होना चाहिए
कि में आप के लिए एक ऐसा मुजर्रब नुस्ख़ा तज्वीज़ कर रहा हूँ
शौकत आबिदी
नज़्म
ज़ेर-ए-मेहराब आ गई हो उस को बेदारी की रात
ख़ुद जनाब-ए-इज़्ज़-ओ-जल से जैसे उमीद-ए-ज़फ़ाफ़
नून मीम राशिद
नज़्म
'ज़ौक़'-ओ-'मोमिन' ने मिरा साज़ बजाया बरसों
'दाग़' ने अपने कलेजे से लगाया बरसों
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
अपनी मन-मानी ही आख़िर में करेंगे अब तो
दहर को वादा-ए-पुर-कैफ़ से मिन्नत-कश-ए-एहसान करो
मख़मूर जालंधरी
नज़्म
तुम को आख़िर मेरे उन के दरमियाँ आने से क्या
मोहसिन-ए-मन वो समझ जाएँगे समझाने से क्या