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नज़्म
पहले थीं वो शोख़ियाँ जो आफ़त-ए-जाँ हो गईं
''लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार-ए-ताक़-ए-निस्याँ हो गईं''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
हक़ तो ये है कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए