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नज़्म
अवतार पयम्बर जन्नती है फिर भी शैतान की बेटी है
ये वो बद-क़िस्मत माँ है जो बेटों की सेज पे लेटी है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कोई उस के जुनूँ का ज़मज़मा गा ही नहीं सकता
झलकती हैं मिरे अशआर में जौलानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दीवारों के नीचे आ आ कर यूँ जम्अ हुए हैं ज़िंदानी
सीनों में तलातुम बिजली का आँखों में झलकती शमशीरें
जोश मलीहाबादी
नज़्म
उफ़ुक़ पे डूबते दिन की झपकती हैं आँखें
ख़मोश सोज़-ए-दरूँ से सुलग रही है ये शाम!