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नज़्म
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हम ने छुपाई हो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मैं ने अपने ज़ख़्मों पर ख़ुद पट्टी बाँधी
मैं ने अपने टूटे दिल के हर टुकड़े को ठीक तरह से जोड़ लिया है
बालमोहन पांडेय
नज़्म
जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
हक़ तो ये है कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है