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नज़्म
रुख़्सत ऐ दिल्ली तिरी महफ़िल से अब जाता हूँ मैं
नौहागर जाता हूँ मैं नाला-ब-लब जाता हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना
इक नार पे जान को हार गया मशहूर है उस का अफ़साना
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तुम रूठ चुके दिल टूट चुका अब याद न आओ रहने दो
इस महफ़िल-ए-ग़म में आने की ज़हमत न उठाओ रहने दो
आमिर उस्मानी
नज़्म
रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम
राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम