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नज़्म
क़ुमरियाँ मीठे सुरों के साज़ ले कर आ गईं
बुलबुलें मिल-जुल के आज़ादी के गुन गाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
है दश्त अब भी दश्त मगर ख़ून-ए-पा से 'फ़ैज़'
सैराब चंद ख़ार-ए-मुग़ीलाँ हुए तो हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मर्हबा ऐ ख़ाक-ए-पाक-ए-किश्वर-ए-हिन्दोस्ताँ
यादगार-ए-अहद-ए-माज़ी है तू ऐ जान-ए-जहाँ
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
जिस में जुज़ सनअत-ए-ख़ून-ए-सर-ए-पा कुछ भी न था
दिल को ताबीर कोई और गवारा ही न थी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ख़िज़्र भी बे-दस्त-ओ-पा इल्यास भी बे-दस्त-ओ-पा
मेरे तूफ़ाँ यम-ब-यम दरिया-ब-दरिया जू-ब-जू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पज़मुर्दा वो गुल दब के हुए ख़ाक के नीचे
ख़्वाबीदा हैं ख़ार-ओ-ख़स-ओ-ख़ाशाक के नीचे
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
जाम-ए-आतिश-ज़ेर-ए-पा की ओट ले कर साक़िया
बोतलों में डूब जाने का ज़माना आ गया