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नज़्म
गुम सी हो जाती हैं नज़रें तो ख़याल आता है
इस में पिन्हाँ तिरी आँखों का इशारा तो नहीं
हिमायत अली शाएर
नज़्म
दिल, नज़र, ज़ेहन, ख़यालात, उसूल ओ अक़दार
सब के सब इस की तग-ओ-ताज़ से लर्ज़ां तरसाँ