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नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
दिलों में अहल-ए-ज़मीं के है नीव उस की मगर
क़ुसूर-ए-ख़ुल्द से ऊँचा है बाम-ए-आज़ादी
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मिरे बाज़ू पे जब वो ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ खोल देती थी
ज़माना निकहत-ए-ख़ुल्द-ए-बरीं में डूब जाता था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तू तो बाग़-ए-ख़ुल्द में मेहमान-ए-यज़्दाँ हो गई
और यहाँ पर मेरी दुनिया पल में वीराँ हो गई
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ज़िक्र यूसुफ़ का तो क्या कीजे तिरी सरकार में
ख़ुद ज़ुलेख़ा आ के बिकती है तिरे बाज़ार में
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
नहीं हर चंद किसी गुम-शुदा जन्नत की तलाश
इक न इक ख़ुल्द-ए-तरब-नाक का अरमाँ है ज़रूर
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कौन सी तुर्फ़ा अदा भा गई इस दुनिया में
ख़ुल्द को छोड़ के क्यूँ आ गई इस दुनिया में
अख़्तर शीरानी
नज़्म
निकल कर जू-ए-नग़्मा ख़ुल्द-ज़ार-ए-माह-ओ-अंजुम से
फ़ज़ा की वुसअतों में है रवाँ आहिस्ता आहिस्ता
नून मीम राशिद
नज़्म
आज भी ख़ार-ज़ार-ए-ग़म ख़ुल्द-ए-बरीं मिरे लिए
आज भी रह-गुज़ार-ए-इश्क़ मेरे लिए है कहकशाँ