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नज़्म
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ख़ाक-ओ-ख़ूँ में मिल रहा है तुर्कमान-ए-सख़्त-कोश
आग है औलाद-ए-इब्राहीम है नमरूद है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उस के तो मुँह का रंग उड़ाती है मुफ़्लिसी
जब ख़ूब-रू पे आन के पड़ता है दिन सियाह
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मेरी हर साँस पे वो उन की तवज्जोह क्या ख़ूब
मेरी हर बात पे वो जुम्बिश-ए-सर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो बचपना जिसे बर्दाश्त अपनी मुश्किल हो
वो बचपना जो ख़ुद अपनी ही तेवरियाँ सी चढ़ाए