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नज़्म
ख़याल ओ शेर की दुनिया में जान थी जिन से
फ़ज़ा-ए-फ़िक्र-ओ-अमल अर्ग़वान थी जिन से
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तमाम लफ़्ज़ों में रौशन हर इक बाब में माँ
जुनूँ के शेल्फ़ में है इश्क़ की किताब में माँ
अज़रा परवीन
नज़्म
यहीं की थी मोहब्बत के सबक़ की इब्तिदा मैं ने
यहीं की जुरअत-ए-इज़हार-ए-हर्फ़-ए-मुद्दआ मैं ने