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नज़्म
हवा में उड़ता है काजल फ़ज़ा है हुज़्न से बोझल
हर एक कुंज की हलचल कोहर में डूब चली है
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
रसूल-ए-ख़ुर्शीद की सदा भी तो मर गई थी कोहर में वो खो गया और
उसी ज़मिस्ताँ की नीम-शब में ख़बर मिली है
अज़ीज़ क़ैसी
नज़्म
रौशनी निखरी हुई है कोहर के उस पार देख
तीरगी सहमी हुई है कोहर के उस पार देख