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नज़्म
जिन का दीं पैरवी-ए-किज़्ब-ओ-रिया है उन को
हिम्मत-ए-कुफ़्र मिले जुरअत-ए-तहक़ीक़ मिले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
बरहम है ज़ुल्फ़-ए-कुफ़्र तो ईमाँ सर-निगूँ
वो फ़ख़्र-ए-कुफ्र ओ नाज़िश-ए-ईमाँ चला गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं सिवाए कुफ़्र के हर हुक्म उस का मान लूँ
ऐ ख़ुदा-ए-दो-जहाँ ऐ मालिक-ए-रोज़-ए-जज़ा
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
और कहा हद हो चुकी है कुफ़्र की इल्हाद की
एक दुनिया मुंतज़िर है आप के इरशाद की
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
तुम कुफ़्र के फ़तवे लाओगे हम हक़ की दलीलें लाएँगे
तुम अपनों को ठुकराओगे हम ग़ैरों को अपनाएँगे
रेहान अल्वी
नज़्म
हक़-परस्ती के तसव्वुर से हमेशा ख़ुश थे
कुफ़्र और शिर्क से बेज़ार गुरु-नानक थे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
नज़्म
क़ल्ब-ए-गीती मैं तबाही के शरारे भर दें
ज़ुल्मत-ए-कुफ़्र को ईमान नहीं कहते हैं
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
जो मिरी बात समझता वो सुख़न-दाँ न मिला
कुफ़्र ओ इस्लाम की ख़ल्वत में भी जल्वत में भी
राही मासूम रज़ा
नज़्म
बेवफ़ाई जिस ने की तुझ से यक़ीनन जो भी हो
ना-मुकम्मल उस का ईमाँ कुफ़्र उस के दिल में है
अख़्तर हुसैन शाफ़ी
नज़्म
मग़रिब-ओ-मशरिक़ की सारी बहस में तुम ना-उमीदी के सिवा क्या दे सके
ना-उमीदी कुफ़्र है