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नज़्म
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
पहले तो हुस्न-ए-अमल हुस्न-ए-यक़ीं पैदा कर
फिर इसी ख़ाक से फ़िरदौस-ए-बरीं पैदा कर
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
वही है शोर-ए-हाए-ओ-हू, वही हुजूम-ए-मर्द-ओ-ज़न
मगर वो हुस्न-ए-ज़िंदगी, मगर वो जन्नत-ए-वतन
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
मुल्क की हालत पे सीनों से धुआँ उठता नहीं
साज़-ए-दिल ख़ामोश हैं शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठता नहीं
शहज़ादी कुलसूम
नज़्म
झुटपुटे का नर्म-रौ दरिया शफ़क़ का इज़्तिराब
खेतियाँ मैदान ख़ामोशी ग़ुरूब-ए-आफ़्ताब
जोश मलीहाबादी
नज़्म
कोई शिकारी बार बार बन में हमारे आए क्यों
चौकेंगे हम हज़ार बार कोई हमें डराए क्यों
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
यौम-ए-आज़ादी ने यूँ छिड़का फ़ज़ाओं में गुलाल
गुल्सिताँ से भीनी भीनी ख़ुशबुएँ आने लगीं