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नज़्म
ये सरगोशियाँ कह रही हैं अब आओ कि बरसों से तुम को बुलाते बुलाते मिरे
दिल पे गहरी थकन छा रही है
मीराजी
नज़्म
प्रयाग पे बिछड़ी हुई बहनें जो मिली हैं
पानी की ज़मीं पर भी तो कलियाँ सी खिली हैं
हामिदुल्लाह अफ़सर
नज़्म
अब धुँदली पड़ती जाती है तारीकी-ए-शब मैं जाता हूँ
वो सुब्ह का तारा उभरा वो पौ फूटी अब मैं जाता हूँ
मजीद अमजद
नज़्म
अब्दुल क़ादिर
नज़्म
कौन से कोह की आड़ में ली ख़ुर्शीद ने जा कर आज पनाह
चौ-तरफ़ा यलग़ार सी की है अब्र ने भी ता-हद्द-ए-नज़र
तरन्नुम रियाज़
नज़्म
इक दुनिया को तड़पाती हैं जाना न अदाएँ भारत की
पर दिल पर चोट लगाती हैं पुर-दर्द सदाएँ भारत की