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नज़्म
'ज़ेहरा' ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है
हालाँकि दर-ईं-अस्ना क्या कुछ नहीं देखा है
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
तुम ने लिक्खा है मिरे ख़त मुझे वापस कर दो
डर गईं हुस्न-ए-दिल-आवेज़ की रुस्वाई से
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
किसी ज़माने में हम ने,
'नासिर', 'फ़राज़', 'मोहसिन', 'जमाल', 'सरवत' के शेर अपनी चहकती दीवार पर लिखे थे