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नज़्म
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
मा'बद-ए-हुस्न-ओ-मोहब्बत बारगाह-ए-सोज़-ओ-साज़
तेरे बुत-ख़ाने हसीं तेरे कलीसा दिल-नवाज़
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
कश्मकश में अपने ही मा'बद से कतराता हुआ
आदमी फिरता था दर दर ठोकरें खाता हुआ
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
इन्ही महरूम-ए-अज़ल राहिबों मा'बद के निगहबानों में
इन मह-ओ-साल-ए-यक-आहंग के ऐवानों में
नून मीम राशिद
नज़्म
कुछ ऐसा है
कि जैसे मैं किसी भूली हुई उम्मत के इक मतरूक माबद में अबस फ़रियाद करता हूँ
बिलाल अहमद
नज़्म
हमारी ख़्वाहिश-ए-तकरार की देरीना आदत से
वो मअ'बद-साज़ बुत-गर अपनी हस्ती के तक़द्दुस में