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नज़्म
सितारों में ज़िया-अफ़रोज़ मिस्ल-ए-माह-ए-कामिल है
समझते हैं तुझे सालार अपना कारवाँ वाले
बिर्ज लाल रअना
नज़्म
धुआँ सा अब नज़र आता है मुझ को माह-ए-कामिल में
तुम्हारे साथ जितने दिन गुज़ारे याद आते हैं
शौकत परदेसी
नज़्म
देख सय्याह उसे रात के सन्नाटे में
मुँह से अपने मह-ए-कामिल ने जब उल्टी हो नक़ाब
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
गाएँ तराने दोश-ए-सुरय्या पे रख के सर
तारों से छेड़ हो मह-ए-कामिल में हम भी हों
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इक सीमीं-बदन इक तौबा-शिकन है महव-ए-ख़िराम इस्टेशन पर
माह-ए-ताबाँ माह-ए-रौशन माह-ए-कामिल माह-ए-अनवर