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नज़्म
और अब याद के इस आख़िरी पैकर का तिलिस्म
क़िस्सा-ए-रफ़्ता बना ज़ीस्त की मातों से हुआ
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
ऐ 'हफ़ीज़' इन नींद के मातों की मंज़िल से निकल
काम है दरपेश दाम-ए-दीदा-ओ-दिल से निकल
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
सब पट्टा तोड़ के भागेंगे मुँह देख अजल के भालों के
क्या डब्बे मोती हीरों के क्या ढेर ख़ज़ाने मालों के
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
उन जाने वाले दस्तों में ग़ैरत भी गई बरनाई भी
माओं के जवाँ बेटे भी गए बहनों के चहेते भाई भी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ऐ ज़ुल्म के मातो लब खोलो चुप रहने वालो चुप कब तक
कुछ हश्र तो उन से उट्ठेगा कुछ दूर तो नाले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
कितने माथों के अभी सर्द हैं रंगीन गुलाब
गर्द अफ़्शाँ हैं अभी गेसू-ए-पुर-ख़म कितने