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नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
मुस्कुरा कर ख़ालिक़-ए-अर्ज़-ओ-समा ने दी निदा
ऐ ग़ज़ाल-ए-मशरिक़ी आ तख़्त के नज़दीक आ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
वादी-ए-मग़रिब में गुम है तेरे दिल की हर उमंग
वलवलों में तेरे शायद अर्सा-ए-मशरिक़ है तंग
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मशरिक़ी पतलूँ में थी ख़िदमत-गुज़ारी की उमंग
मग़रिबी शक्लों से शान-ए-ख़ुद-पसंदी आश्कार
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
बदल डाला है ऐसा मग़रिबी तहज़ीब ने हम को
मज़ाक़-ए-ख़वान-ए-निअमत और तर्ज़-ए-पैरहन बदला
सय्यद तसलीम हैदर क़मर
नज़्म
नसरीन अंजुम भट्टी
नज़्म
ये माना मग़रिबी तालीम ने पर्वाज़ बख़्शी है
ये माह-ओ-ख़ुर भी बन जाएँगे अब क़िंदील का शाना
बेबाक भोजपुरी
नज़्म
मग़रिबी तहज़ीब में डूबा हुआ था हर जवाँ
मशरिक़ी अतवार से बेज़ार था हिन्दोस्ताँ