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नज़्म
अब अज़ीज़ आ जाएँ मिलने को तो घबराता हूँ मैं
ढूँडते फिरते हैं मुझ को घर में खो जाता हूँ मैं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
जमीलुर्रहमान
नज़्म
हुस्न-ओ-उलफ़त दोनों इक मंज़िल में आ कर खो गए
क्या ख़बर है कौन किस का रहनुमा है आज-कल