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नज़्म
तुम चाहो तो बस्ती छोड़े तुम चाहो तो दश्त बसाए
ऐ मतवालो नाक़ों वालो वर्ना इक दिन ये होगा
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ख़ून-ए-दिल देना पड़ा ख़ून-ए-जिगर देना पड़ा
अपने ख़्वाबों की हसीं परछाइयाँ देना पड़ीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
ऐ कि तू इक जौहर-ए-तेग़-ए-दिल-ए-इस्लाम थी
तेरी हस्ती यादगार-ए-रौनक़-ए-अय्याम थी
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
नज़्म
क्या ख़बर तुझ को जवाँ हो के तिरा ताज-महल
रौनक़-ए-महफ़िल-ए-हस्ती को दो-बाला कर दे
अस्ताद रामपुरी
नज़्म
मुझ में मरियम का तक़द्दुस था तो सीता का वक़ार
कर दिया ज़र ने मुझे रौनक़-ए-हुस्न-ए-बाज़ार
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
फ़ैज़ से तेरे ही है उर्दू का ये हुस्न-ए-जमाल
तेरे बाइ'स ही बनी वो रौनक़-ए-बज़्म-ए-जहाँ