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नज़्म
ब-ज़ेर-ए-साया-ए-दीवार-ए-मस्जिद है जो आसूदा
ये ख़ाकी जिस्म है सत्तर बरस का राह पैमूदा
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
साग़र निज़ामी
नज़्म
इरम-ज़ार-ए-अबद है साया-ज़न जिन के ख़याबाँ पर
दवामिय्यत के जल्वे छा रहे हैं बाग़-ए-बुस्ताँ पर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
नौ-जवानो अब हमें बेदार होना चाहिए
देश-सेवा के लिए तय्यार होना चाहिए