aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "maslak-e-ushshaaq"
दिल में उठती हुई धड़कन की तरहमस्लक-ए-नान-ए-जवीं
आए उश्शाक़ गए वादा-ए-फ़र्दा ले करअब उन्हें ढूँड चराग़-ए-रुख़-ए-ज़ेबा ले कर
पहली आवाज़गर है यही मस्लक-ए-शम्स-ओ-क़मर इन शम्स-ओ-क़मर का क्या होगा
माथे पे फ़र्श-ए-बोस-ए-रिवायात का ग़ुबारचेहरा ब-फ़ैज़-ए-हल्क़ा-ए-उश्शाक़ अगरई
हम पे ही ख़त्म नहीं मस्लक-ए-शोरीदा-सिरीचाक-दिल और भी हैं चाक-क़बा और भी हैं
दिल-आराम-ओ-उश्शाक सब ख़ौफ़ के दाएरे में खड़े हैंहवाओं में बोसों की बासी महक है
जो फ़क़त रंग और नस्ल के फ़र्क़ परमस्लक-ओ-दीन के नाम पर
दिल-आराम ओ उश्शाक़ सबख़ौफ़ के दाएरे में खड़े हैं
जिस की लुग़त में आज नहीं है क्लर्क हैकल आओ जिस का मस्लक-ए-दीं है क्लर्क है
जज़्बा-ए-उश्शाक़ काम आने को हैफिर लज़ीज़-ओ-शीरीं जाम आने को है
शा'इरी हिज्र का लिक्खा हुआ अफ़्साना हैशे'र कहना है तो फिर हल्क़ा-ए-‘उश्शाक़ में आ
मेहंदी की सजावट कि हथेली पे गुलिस्ताँया हल्क़ा-ए-उश्शाक़ में है चेहरा-ए-ताबाँ
एक दिन जन्नत में बोला इक शहीद-ए-हक़-शनासमस्लक-ए-हक़ पर नहीं है मेरी जन्नत की असास
नई नई पढ़ी सहाफ़तमशअ'ल-ओ-हुजूम बराबर
तमाम शफ़क़तों की नर्म चाँदनीमलाइक-ओ-नुजूम
मशाम-ए-जाँ मोअ'त्तर कर रही होठीक है लेकिन
हम मशअ'ल-ए-आशुफ़्ता लौहम शहर-ज़ादों की सुनो
मसअला आ गया है पानी काया'नी दरिया की बे-ज़बानी का
डरा सकीं न कलीसा की मुझ को तलवारेंसिखाया मसअला-ए-गर्दिश-ए-ज़मीं मैं ने
मैं ने कुफ्र-ए-जुनूँ के हाथोंममलकत-ए-कौनैन गँवा दी
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