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नज़्म
अजब है ये ज़बाँ, उर्दू
कभी कहीं सफ़र करते अगर कोई मुसाफ़िर शेर पढ़ दे 'मीर', 'ग़ालिब' का
गुलज़ार
नज़्म
वो कैसे लोग होते हैं जिन्हें हम दोस्त कहते हैं
न कोई ख़ून का रिश्ता न कोई साथ सदियों का
इरफ़ान अहमद मीर
नज़्म
तुम्हारी हर ग़ज़ल में मीर का अंदाज़ मिलता है
हर इक मिसरे से जैसे धीमी धीमी आँच उठती है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
जिस को सब कहते हैं हिटलर भेड़िया है भेड़िया
भेड़िये को मार दो गोली पए-अम्न-ओ-बक़ा
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मिरी मज़लूम उर्दू तेरी साँसों में घुटन क्यूँ है
तेरा लहजा महकता है तो लफ़्ज़ों में थकन क्यूँ है
मंज़र भोपाली
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात