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नज़्म
सागर से उभरी लहर हूँ मैं सागर में फिर खो जाऊँगा
मिट्टी की रूह का सपना हूँ मिट्टी में फिर सो जाऊँगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सारे जहाँ को जिस ने इल्म ओ हुनर दिया था
मिट्टी को जिस की हक़ ने ज़र का असर दिया था
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जब चलते चलते रस्ते में ये गौन तिरी रह जावेगी
इक बधिया तेरी मिट्टी पर फिर घास न चरने आवेगी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आश्कारा है ये अपनी क़ुव्वत-ए-तस्ख़ीर से
गरचे इक मिट्टी के पैकर में निहाँ है ज़िंदगी