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नज़्म
जब शोला-ए-मीना सर्द हो ख़ुद जामों को फ़रोज़ाँ कौन करे
जब सूरज ही गुल हो जाए तारों में चराग़ाँ कौन करे
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
सुर्ख़-रू आफ़ाक़ में वो रहनुमा मीनार हैं
रौशनी से जिन की मल्लाहों के बेड़े पार हैं
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
हर शजर मीनार-ए-ख़ूँ हर फूल ख़ूनीं-दीदा है
हर नज़र इक तार-ए-ख़ूँ हर अक्स ख़ूँ-बालीदा है