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नज़्म
घर के बाहर लॉन भी होगा गेंदा और गुल-मोहर के फूल
खरी खाट नहीं रखेंगे बेड बड़े महँगे होंगे
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
जिन के दोनों तरफ़ थे पेड़ गुल-मोहर के कई
जिस्म पे टाँके हुए नर्म से ख़्वाबों के फूल
संजय कुमार कुन्दन
नज़्म
मेरे इक प्यादे ने तेरा चाँद का मुहरा मार लिया
मौत को शह दे कर तुम ने समझा था अब तो मात हुई
गुलज़ार
नज़्म
''लाओ तो क़त्ल-नामा मिरा मैं भी देख लूँ
किस किस की मोहर है सर-ए-महज़र लगी हुई''
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
शहपर-ए-बुलबुल पे खींची जाए तस्वीर-ए-शिग़ाल!
मोतियों पर सब्त हो तूफ़ान की मोहर-ए-जलाल
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हर इक कशीद है सदियों के दर्द ओ हसरत की
हर इक में मोहर-ब-लब ग़ैज़ ओ ग़म की गर्मी है