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नज़्म
वो जब हंगाम-ए-रुख़्सत देखती थी मुझ को मुड़ मुड़ कर
तो ख़ुद फ़ितरत के दिल में महशर-ए-जज़्बात होता था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो राह बदलते हैं अपनी और मुड़ कर हाथ हिलाते हैं
लेकिन वो दिलों को यादों की ख़ुशबू बन कर महकाते हैं
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
मुँह धो कर जब उस ने मुड़ कर मेरी जानिब देखा
मुझ को ये महसूस हुआ जैसे कोई बिजली चमकी है
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
मुड़ चुकी जब मौत के जादे की जानिब ज़िंदगी
अब किसी ने आफ़ियत की राह दिखलाई तो क्या