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नज़्म
मुफ़लिस है तो इक जिंस-ए-फ़रोमाया है ला-रैब
मुख़्लिस है तो नाकाम है मालूम नहीं क्यूँ
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
कोई मुख़्लिस मुझे तुझ सा न मिला तेरे बाद
याद आती है बहुत तेरी वफ़ा तेरे बाद
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
ग़ैरत-ए-मुख़्लिस हलाक-ए-जज़्बा-ए-पिंदार हो
ऐ हरीफ़-ए-ज़ेहन-ओ-दिल बेदार हो बेदार हो
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
जैसे मुफ़्लिस की जवानी जैसे बेवा का शबाब
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिए जाते हैं
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में