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नज़्म
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उस रोज़ हमें मालूम हुआ उस शख़्स का मुश्किल समझाना
इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
सफ़र मुश्किल हो कितना भी मगर वो साथ जाते हैं
वो कैसे लोग होते हैं जिन्हें हम दोस्त कहते हैं
इरफ़ान अहमद मीर
नज़्म
पिरोना एक ही तस्बीह में इन बिखरे दानों को
जो मुश्किल है तो इस मुश्किल को आसाँ कर के छोड़ूँगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कितनी मुश्किल ज़िंदगी है किस क़दर आसाँ है मौत
गुलशन-ए-हस्ती में मानिंद-ए-नसीम अर्ज़ां है मौत
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो बचपना जिसे बर्दाश्त अपनी मुश्किल हो
वो बचपना जो ख़ुद अपनी ही तेवरियाँ सी चढ़ाए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
काट लेना हर कठिन मंज़िल का कुछ मुश्किल नहीं
इक ज़रा इंसान में चलने की हिम्मत चाहिए
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुश्किल हुई है वाँ से हर इक को राह चलनी
फिसला जो पाँव पगड़ी मुश्किल है फिर संभलनी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
बे-शक पढ़ाई है सवा और वक़्त है थोड़ा रहा
है ऐसी मुश्किल बात क्या मेहनत करो मेहनत करो