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नज़्म
मौज-ए-मुज़्तर थी कहीं गहराइयों में मस्त-ए-ख़्वाब
रात के अफ़्सूँ से ताइर आशियानों में असीर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उड़ चली है रंग-ए-रुख़ बन कर हयात-ए-मुस्तआर
हो रहा है क़ल्ब-ए-मुर्दा में जवानी का फ़िशार
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
तो तुम से मुस्तआ'र ले लूँगा ये एहतियात
तुम अपने घर की अँगेठी में कड़कड़ाती लकड़ियों के कोएलों से
ज़ाहिद हसन
नज़्म
उन के लिए मौत इक होश का पैग़ाम है
ज़िंदगी मुस्तआ'र जिन की है मानिंद-ए-ख़्वाब
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
वो अपनी नफ़्इ से इसबात तक माशर के पहुँचा है
कि ख़ून-ए-रायगाँ के अम्र में पड़ना नहीं हम को
जौन एलिया
नज़्म
जन्नत-ए-नज़ारा है नक़्श-ए-हवा बाला-ए-आब
मौज-ए-मुज़्तर तोड़ कर ता'मीर करती है हबाब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दीद तेरी आँख को उस हुस्न की मंज़ूर है
बन के सोज़-ए-ज़िंदगी हर शय में जो मस्तूर है