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नज़्म
मोतिया चम्पा चँबेली अपनी दुनिया से हैं दूर
ऐ सखी मुझ को बता दे हुस्न का क्या है मआल
प्रेम पाल अश्क
नज़्म
भेद मिरा मत कहना किसी से देख मिरी ऐ भोली सखी
अब के बरस फागुन में किसी से ऐसी खेली होली सखी
ज़फ़र संभली
नज़्म
सखी फिर आ गई रुत झूलने की गुनगुनाने की
सियह आँखों की तह में बिजलियों के डूब जाने की