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नज़्म
हाथों में पियाला शर्बत का हो आगे इक फर्राश खड़ा
फर्राश भी पंखा झलता हो तब देख बहारें जाड़े की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ये नहीं होगा ख़फ़ा हो कर दिहाड़ी काट दी
आधे रस्ते लाए और इंजन से गाड़ी काट दी