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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दूर कहीं उस डूबते सूरज की सुर्ख़ ताँबे ऐसी रौशनी से तुम्हारी दहकती जबीं पर
जब दराड़ें पड़ने लगती हैं
जानाँ मलिक
नज़्म
बताओ हाथ पर पड़ने से उस का हाल क्या होगा
नज़र आ जाते हैं जिस बेद के हम सब का दम निकले