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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जब तिरे दामन में पलती थी वो जान-ए-ना-तवाँ
बात से अच्छी तरह महरम न थी जिस की ज़बाँ
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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जब तिरे दामन में पलती थी वो जान-ए-ना-तवाँ
बात से अच्छी तरह महरम न थी जिस की ज़बाँ