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नज़्म
पहले ज़माना और था मय और थी दौर और था
वो बोलियाँ ही और थीं वो टोलियाँ ही और थीं, वो होलियाँ ही और थीं
अली जवाद ज़ैदी
नज़्म
तुम्हें जब याद करता हूँ तो इक मिटती हुई दुनिया
मिरी आँखों के आईने में पहरों झिलमिलाती है
अली जवाद ज़ैदी
नज़्म
हक़ीक़ी दुश्मनी को दोस्ती के मक्र पर वर पैरहन पर
ख़्वाह इस में फ़ाएदा ही क्यूँ न हो