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नज़्म
उखड़ी-उखड़ी बात करे है भूल के अगला याराना
कौन हो तुम किस काम से आए? हम ने न तुम को पहचाना
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
रात मुझे अपने हाथ से मसल रही है
मैं मैला कपड़ा हूँ जो न पहनने के काम आए न ही रखने के
शाइस्ता हबीब
नज़्म
हिल्म के साँचे में रूह-ए-नाज़ को ढाले हुए
गर्दनों में ख़म सरों पर चादरें डाले हुए
जोश मलीहाबादी
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
ऐ दिल-ए-नाशाद मुझ को तेरी वहशत देख कर
याद आ जाता है क़िस्सा क़ैस और फ़रहाद का